श्री कल्कि नाम की क्रान्ति | ||
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- | ||
अपनी स्थापना के समय से ही श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) श्री कल्कि नाम की क्रान्ति का महापर्व मना रही है। यह नाम क्रान्ति क्या है ?
कलियुग केवल नाम आधारा, सुमर - सुमर नर उतरही पारा।
कलियुग में मनुष्य कल्कि नाम का स्मरण या जाप करने से ही भव सागर से पार उतर जाते हैं। अतः भगवान श्री विष्णु के निष्कलंक व अन्तिम अवतार श्री कल्कि का नाम स्मरण अथवा श्री कल्कि जी के महामंत्र का बारम्बार स्तुति करना ही श्री कल्कि नाम की क्रान्ति है। यह नाम क्रान्ति श्रद्धावानों के बलबूते ही सम्पन्न होगी। श्रद्धा और सम्र्पण की नींव पर टिका यह सत्युग निर्माण का मिशन इस नाम क्रान्ति से पुष्ट होगा। स्वयं राष्ट्र कवि श्री मैथिली शरण गुप्त ने लिखा है -
सौ - सौ निराशाएं रहें, विश्वास यह दृढ़ मूल है,
इस आत्म लीला भूमि को, वह विभु न सकता भूल है।
अनुकूल अवसर पर दयामय, फिर दया दिखलायेंगे,
वे दिन यहाँ फिर आयेंगे, फिर आयेंगे, फिर आयेंगे।।
इस अथाह विश्वास के मूल में सत्युग की स्थापनाथ्र श्री हरि भगवान श्री कल्कि के अवतार का आह्वान है।
भारतीय संस्कृति की गौरव - गरिमा की पताका अब दिग दिगन्त फहरायेगी
-
यह स्वप्न नहीं, सत्य है कि आने वाले दिनों में भारतीय संस्कृति की खोई हुई आभा अपने प्रचंड प्रकाश के साथ विश्व गगन पर प्रकट होगी। इय पृथ्वी पर ऋषियों और देवताओं द्वारा प्रेरित प्रवर्तित संस्कृति वाला सत्युग पुनः अवतरित होगा।